ब्रह्मा जी ने मेघनाथ से आग्रह किया कि वो इंद्र को मुक्त कर दें. मेघनाथ ने ब्रह्मा जी का आग्रह ठुकरा दिया. फिर ब्रह्मा ज …अधिक पढ़ें
मेघनाथ लंकापति रावण का सबसे बड़ा पुत्र और युवराज था. माना जाता है कि रावण बहुत बड़ा विद्वान था. रावण अपने से भी कहीं ज्यादा गुणवान, पराक्रमी और विद्वान अपने बड़े पुत्र मेघनाथ को बनाना चाहता था. धर्म ग्रंथों के अनुसार अपने पुत्र को सबसे ज्यादा शक्तिशाली और अजर अमर बनाने की कामना को लेकर त्रिलोक विजेता रावण ने उसके जन्म के समय सभी देवताओं को एक ही स्थान अर्थात ग्यारहवें घर में मौजूद रहने के लिए कहा था. लेकिन भगवान शनिदेव ने रावण की आज्ञा का पालन नहीं किया और 12वें घर में जाकर बैठ गए. जिससे मेघनाथ अजर अमर न हो सके. राम और रावण के बीच युद्ध में लक्ष्मण ने मेघनाथ का वध किया था. लक्ष्मण ने अपने बाण से मेघनाथ का सिर धड़ से अलग कर दिया था.
रावण ने अपने ज्येष्ठ पुत्र का नाम मेघनाथ क्यों रखा इसके पीछे भी एक कहानी है. मंदोदरी ने जब पुत्र को जन्म दिया तो तब उसके रोने की आवाज किसी सामान्य बच्चे की तरह नहीं बल्कि बादलों की गड़गड़ाहट की तरह सुनाई दी. इस वजह से उनका नाम मेघनाथ रखा गया.
क्यों कहे जाने लगे इंद्रजीत
पौराणिक कथाओं के अनुसार रावण ने स्वर्ग पर अपना कब्जा जमाने के लिए देवताओं पर आक्रमण कर दिया. इस युद्व में मेघनाथ ने भी भाग लिया था. युद्व के दौरान जब इंद्र ने रावण पर आक्रमण करना चाहा तो अपने पिता को बचाने के लिए मेघनाथ आगे आ गए. मेघनाथ ने इंद्र और उनके वाहन एरावत पर पलटवार करते हुए इंद्र सहित सभी देवताओं को परास्त कर दिया. जिसके बाद उन्हें इंद्रजीत के नाम से भी पुकारा जाने लगा.
ये भी पढ़ें-School Closed: बिहार में शीतलहरी का प्रकोप अभी
ब्रह्मा से क्या मांगा वरदान
युद्व जीतने के बाद मेघनाथ जब स्वर्ग से निकलने लगे तो उन्होंने इंद्र को अपने साथ ले लिया. मेघनाथ इंद्र को लंका ले आए. ब्रह्मा जी ने मेघनाथ से आग्रह किया कि वो इंद्र को मुक्त कर दें. मेघनाथ ने ब्रह्मा जी का आग्रह ठुकरा दिया. फिर ब्रह्मा जी ने इंद्र को छोड़ देने के बदले एक वरदान मांगने का वचन दिया. मेघनाथ ने उनसे अमर होने का वरदान मांगा. ब्रह्मा जी ने मेघनाथ को समझाने का प्रयास किया कि यह तो किसी जीव के लिए संभव नहीं है, तुम कोई दूसरा वरदान मांग लो. लेकिन मेघनाथ अपनी बात से डिगने को तैयार नहीं हुए.
फिर क्या मिला आशीर्वाद
ब्रह्मा जी ने मेघनाथ को वरदान दिया कि अगर वो अपनी कुल देवी निकुंभला देवी का यक्ष करें और जब यक्ष पूर्ण हो जाएगा तो उन्हें एक रथ प्राप्त होगा. इस रथ पर बैठकर लड़ने से न तो वह पराजित होगा और न ही उसकी मृत्यु होगी. ब्रह्मा जी इंद्र को यह आशीर्वाद भी दिया कि धरती पर केवल एक व्यक्ति ही उसका वध कर सकता है जो 12 सालों से सोया न हो. लक्ष्मण ही ऐसे थे जो मेघनाथ का वध कर सकते थे, क्योंकि वनवास के दौरान वह 14 वर्षों तक सोए नहीं थे. यही वजह है कि राम-रावण युद्व के दौरान लक्ष्मण के हाथों मेघनाथ का अंत हुआ.
सुलोचना के पास भेजी मेघनाथ की भुजा
युद्व में लक्ष्मण ने अपने घातक बाण से मेघनाथ का सिर उसके धड़ से अलग कर दिया था और उसे भगवान राम के चरणों में रख दिया. राम मेघनाथ की पत्नी सुलोचना को यह संदेश भेजना चाहते थे कि उसका पति युद्व में मारा जा चुका है. इसके लिए राम ने मेघनाथ की एक भुजा काटकर सुलोचना के पास भेजी. सुलोचना को अपने पति की मौत पर भरोसा नहीं हुआ. तब सुलोचना के कहने पर मेघनाथ की कटी हुई भुजा ने लिखकर उसे भरोसा दिलाया. भुजा ने लिखकर लक्ष्मण का गुणगान किया. पति की मौत के बारे में जानकर सुलोचना शोक में डूब गईं. उन्होंने कहा कि वो सती होना चाहती हैं.
इसके बाद मंदोदरी के कहने पर सुलोचना श्रीराम के पास पहुंची. उन्होंने श्रीराम से कहा कि आप मुझे मेरे पति का सिर लौटा दीजिए ताकि मैं सती हो सकूं. सुलोचना की दशा देखकर श्रीराम द्रवित हो गए. उऩ्होंने कहा कि मैं तुम्हारे पति को जीवित कर देता हूं, लेकिन सुलोचना ने मना कर दिया.
जब जोर जोर से हंसने लगा सिर
इस बीच सुग्रीव को आशंका हुई कि मेघनाथ कि कटी हुई भुजा ने लक्ष्मण का गुणगान कैसे किया. सुलोचना ने कहा कि क्या वह यह बात तब मानेंगे जब ये कटा शीश हंसेगा. सुलोचना ने कटे हुए शीश से कहा कि हे स्वामी, हंस दीजिए. इतना कहते ही मेघनाथ का कटा हुआ सिर जोर जोर से हंसने लगा. इसके बाद ही सुलोचना सती हो गई.